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लेखनी प्रतियोगिता -06-Sep-2022 भोर की किरणें बुलाएं

भोर की किरणें बुलाएं

विधा-कविता


भोर की किरणें बुलाएं जाग जाओ दिन सुनहरा

आज जो निश्चित किया है लक्ष्य को बढ़ते जाना

आलस्य त्याग जग उठ खड़ा है खुशियों का डेरा

 लक्ष्य साधना की ये है बेला तुमको भी दूर जाना 


सप्तस्वर के गीत गुनगुनाना हृदय में झंकार करना

आलस्य गर साथी रहा तो विध्वंस की देर है ना

अरुण की किरणें हैं बिखरी मिट रहा तम अंधेरा

खास बातें छुपी प्रकट करने को जीवन सुनहरा 


जिस बंधन में तू जकड़ा मोम से पल में पिघलना

पथ की बाधाएं ही उन्मुक्त उडा़न का संदेश देती

मंजिल तेरी राहों में कब से ही है पलकें बिछाए

लिख नया इतिहास नव सृजन का पथ बनाकर


  स्वरचित एवं मौलिक रचना


          अनुराधा प्रियदर्शिनी

         प्रयागराज उत्तर प्रदेश


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8 Comments

Wahhh बहुत ही खूबसूरत संदेह देती हुई कविता लाजवाब लाजवाब

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Abhinav ji

07-Sep-2022 07:39 AM

Nice

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Pratikhya Priyadarshini

06-Sep-2022 09:35 PM

Bahut khoob 🙏🌺

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